मैरिज हॉल बनाने के लिए मंदिरों को दान नहीं देते श्रद्धालु… सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रद्धालुओं के जरिए मंदिरों को दी की गई राशि का इस्तेमाल शादी हॉल जैसी व्यावसायिक सुविधाओं के निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता. SC ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें तमिलनाडु सरकार द्वारा मंदिर के पैसों से शादी हॉल बनाने की योजना को रद्द कर दिया गया था.

दरअसल तमिलनाडु सरकार ने राज्य के 27 मंदिरों में विवाह हॉल बनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसके लिए करीब 80 करोड़ रुपए की मंदिर निधि का उपयोग किया जाना था. सरकार का तर्क था कि यह योजना हिंदू समाज को किफायती विवाह स्थल उपलब्ध कराने के लिए है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को लाभ होगा.

‘धार्मिक उद्देश्यों के लिए हो इस्तेमाल’

हालांकि इस योजना के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच में एक याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि मंदिर निधियों का इस्तेमाल सिर्फ धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह का निर्माण हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त अधिनियम, 1959 की धाराओं 35, 36 और 66 का उल्लंघन करता है.

हाई कोर्ट ने 19 अगस्त को अपने फैसले में कहा था कि मंदिरों की निधि का इस्तेमाल विवाह हॉल जैसी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि यह धार्मिक उद्देश्य की परिभाषा में नहीं आता. इस निर्णय को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

‘मंडप बनाने के लिए मंदिर को धन नहीं देते श्रद्धालु’

मंगलवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों को मिले धन को सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं मानने का एक आदेश बरकरार रखते कहा कि श्रद्धालुओं से मिले पैसे का इस्तेमाल विवाह मंडप बनाने के लिए नहीं किया जा सकता. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि श्रद्धालु विवाह मंडप बनाने के लिए मंदिर को धन नहीं देते. बेंच ने कहा कि इस पैसे का इस्तेमाल मंदिर के सुधार के लिए हो सकता है.

‘शिक्षा, चिकित्सा संस्थानों में हो धन का उपयोग’

बेंच ने कहा कि श्रद्धालु मंदिरों को जो धन देते हैं, वह धार्मिक आस्था से प्रेरित होता है. वो यह पैसा विवाह हॉल जैसे निर्माण के लिए नहीं देते. कोर्ट ने आगे यह सवाल भी उठाया कि यदि मंदिर परिसर में विवाह समारोह आयोजित किया गया और अश्लील गाने बजाए गए, तो क्या यह मंदिर की भूमि का सही इस्तेमाल होगा?’. सुप्रीम कोर्ट ने इसके बजाय सुझाव दिया कि इस धन का उपयोग शिक्षा जैसे धर्मार्थ कार्यों और चिकित्सा संस्थानों के लिए किया जाना चाहिए.

19 नवंबर को होगी सुनवाई

सीनियर वकील मुकुल रोहतगी और अन्य वकील याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. बेंच ने कहा कि मुद्दा यह है कि सरकार का निर्णय सही था या गलत. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती पर सुनवाई के लिए सहमति जताई और 19 नवंबर की तारीख तय की. बेंच ने कहा कि ‘हम इस मामले पर सुनवाई करेंगे. हम याचिकाकर्ताओं को कोई स्थगन आदेश नहीं दे रहे हैं’.

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